"हो कहाँ छिपाये गात देवता मेरे / प्रेम नारायण 'पंकिल'" के अवतरणों में अंतर
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06:54, 23 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
हो कहाँ छिपाये गात देवता मेरे।
क्यों हो न पा रही बात देवता मेरे।
क्या तेरा होकर भी घूँमू दर-दर मारा मारा।
सुना न तेरे जन का धूमिल रहता भाग्य-सितारा।
क्या मैं ही तुम्हें न ज्ञात देवता मेरे -
हो कहाँ छिपाये ---------------।।1।।
जीवन भर करता ही आया गाढ़ी पाप कमाई।
अब भी नयन नहीं खुलते करूणा वरूणालय साँई।
घेरे विकार की रात देवता मेरे --
हो कहाँ छिपाये -----------------।।2।।
हमें भोग डाला भोगों ने माया ने भरमाया।
आखिर मिट्टी में मिल जायेगी दुर्लभ नर काया।
क्यों हो न पार ही बात देवता मेरे -
हो कहाँ छिपाये---------------- ।।3।।
नहीं शेष-शारद कह पाते तेरी कृपा कहानी ।
सच में तुम समान बस तुम्हीं हो प्रभु अवढ़रदानी
दिखला दो पद-जलपात देवता मेरे -
हो कहाँ छिपाये ----------------।।4।।
कृपा निधान पास क्या नेरे कौन आप से चोरी।
हथ जोरी कर दिखा रहा ‘पंकिल’ अपनी कमजोरी।
भेजो निज भक्ति-प्रभात देवता मेरे -
हो कहाँ छिपाये --------------।।5।।