भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पुर‍इन मगन हो जाती है / रंजना जायसवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / …)
 
(कोई अंतर नहीं)

19:55, 24 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

जब भी
जीती हूँ तुममें
तुम
आ जाते हो
मुझमें
और हर लेते हो
मेरे अन्दर का
सूनापन

बाहर
पसर जाती है
एक चुप्पी
और भीतर मच जाती है
हलचल

रातें
सजल हो जाती हैं
दिन तरल

पोखर भर जाता है
पुरइन मगन हो जाती है...।