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+ | प्राप्त कर उनके पदों की ओट, | ||
+ | रो पड़े युग बन्धु उनमें लोट-- | ||
+ | "क्या हुआ गुरुदेव, यह अनिवार्य?" | ||
+ | "वत्स, अनुपम लोक-शिक्षण-कार्य। | ||
+ | त्याग का संचय, प्रणय का पर्व, | ||
+ | सफल मेरा सूर्यकुलगुरु-गर्व!" | ||
+ | "किन्तु मुझ पर आज सारी सृष्टि, | ||
+ | कर रही मानों घृणा की वृष्टि। | ||
+ | देव, देखूँ मैं किधर, किस भाँति?" | ||
+ | "भरत, तुम आकुल न हो इस भाँति। | ||
+ | वत्स, देखो तुम पिता की ओर, | ||
+ | सत्य भी शव-सा अकम्प कठोर! | ||
+ | और उनका प्रेम-ओघ अभग्न, | ||
+ | वे स्वयं जिसमें हुए चिरमग्न! | ||
+ | और देखो भातृवर की ओर, | ||
+ | त्याग का जिसके न ओर, न छोर। | ||
+ | अतुल जिसकी पुण्य पितर-प्रीति-- | ||
+ | स्वकुल-मर्यादा, विनय, नय-नीति। | ||
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19:23, 26 जनवरी 2010 का अवतरण
आ गये तब तक तपोव्रतनिष्ठ,
राजकुल के गुरु वरिष्ठ वसिष्ठ।
प्राप्त कर उनके पदों की ओट,
रो पड़े युग बन्धु उनमें लोट--
"क्या हुआ गुरुदेव, यह अनिवार्य?"
"वत्स, अनुपम लोक-शिक्षण-कार्य।
त्याग का संचय, प्रणय का पर्व,
सफल मेरा सूर्यकुलगुरु-गर्व!"
"किन्तु मुझ पर आज सारी सृष्टि,
कर रही मानों घृणा की वृष्टि।
देव, देखूँ मैं किधर, किस भाँति?"
"भरत, तुम आकुल न हो इस भाँति।
वत्स, देखो तुम पिता की ओर,
सत्य भी शव-सा अकम्प कठोर!
और उनका प्रेम-ओघ अभग्न,
वे स्वयं जिसमें हुए चिरमग्न!
और देखो भातृवर की ओर,
त्याग का जिसके न ओर, न छोर।
अतुल जिसकी पुण्य पितर-प्रीति--
स्वकुल-मर्यादा, विनय, नय-नीति।