भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बनिया होने के माने हैं / मुकेश जैन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mukesh Jain (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: '''बनिया होने के माने हैं''' बनिया होने के माने हैं चोर और कमीना होना…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:29, 26 जनवरी 2010 का अवतरण
बनिया होने के माने हैं
बनिया होने के माने हैं चोर और कमीना होना एक गँवार आदमी होना जो जिन्दगी जीना नहीं जानता है
खूबसूरत लड़कियाँ बनियों के लिए
नहीं होतीं हैं
और बौद्धिकों के लिए तो बनिया
बात करने के काबिल भी नहीं
बनिया होने के माने हैं जिन्दगी ढोना
कोई बाप सीधा रुख नहीं करता है बनियों की तरफ़
क्लर्कों के बाद आती है बनियों की औकात
बनिया होने के माने हैं अयोग्य होना प्रगतिशीलों के लिए अछूत
मैं बनिया हूं और कविता लिखता हूँ . ______________________________________ 21/03/1992