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"पंचवटी / मैथिलीशरण गुप्त / पृष्ठ १२" के अवतरणों में अंतर
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+ | होता है विरोध से भी कुछ, अधिक कराल हमारा क्रोध, | ||
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+ | सबने मृदु मारुत का दारुण, झंझा नर्तन देखा था, | ||
+ | :सन्ध्या के उपरान्त तमी का, विकृतावर्तन देखा था! | ||
+ | काल-कीट-कृत वयस-कुसुम-का, | ||
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12:54, 29 जनवरी 2010 का अवतरण
पक्षपातमय सानुरोध है, जितना अटल प्रेम का बोध,
उतना ही बलवत्तर समझो, कामिनियों का वैर-विरोध।
होता है विरोध से भी कुछ, अधिक कराल हमारा क्रोध,
और, क्रोध से भी विशेष है, द्वेष-पूर्ण अपना प्रतिशोध॥
देख क्यों न लो तुम, मैं जितनी सुन्दर हूँ उतनी ही घोर,
दीख रही हूँ जितनी कोमल, हूँ उतनी ही कठिन-कठोर!"
सचमुच विस्मयपूर्वक सबने, देखा निज समक्ष तत्काल-
वह अति रम्य रूप पल भर में, सहसा बना विकट-कराल!
सबने मृदु मारुत का दारुण, झंझा नर्तन देखा था,
सन्ध्या के उपरान्त तमी का, विकृतावर्तन देखा था!
काल-कीट-कृत वयस-कुसुम-का,