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"शाख़-ए-बदन को ताज़ा फूल निशानी दे / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर
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उसके नाम पे खुले दरीचे के नीचे | उसके नाम पे खुले दरीचे के नीचे | ||
− | कैसी प्यारी ख़ुशबू रात की | + | कैसी प्यारी ख़ुशबू रात की रानी |
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− | बात तो तब है मेरे हर्फ़ में | + | बात तो तब है मेरे हर्फ़ में गूँज के साथ |
कोई उस लहजे को बात पुरानी दे | कोई उस लहजे को बात पुरानी दे | ||
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22:02, 30 जनवरी 2010 का अवतरण
शाख़-ए-बदन को ताज़ा फूल निशानी दे
कोई तो हो जो मेरी जड़ों को पानी दे
अपने सारे मंज़र मुझसे ले ले और
मालिक मेरी आँखों को हैरानी दे
उसकी सरगोशी में भीगती जाए रात
क़तरा-क़तरा तन को नई कहानी दे
उसके नाम पे खुले दरीचे के नीचे
कैसी प्यारी ख़ुशबू रात की रानी
दे
बात तो तब है मेरे हर्फ़ में गूँज के साथ
कोई उस लहजे को बात पुरानी दे