भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"माँ-1 / रंजना जायसवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / …)
(कोई अंतर नहीं)

22:14, 1 फ़रवरी 2010 का अवतरण

धूल पर
लकीरें खींचकर
खेलती थी मैं
सखियों के साथ
इक्कट-दुक्कट
गोटियाँ...

और माँ डाँटती थी -
लड़कियाँ खेलती नहीं
माँजती हैं बरतन
फूँकती है चूल्हा
लगाती हैं झाडू
पछींटती हैं कपडा़

मैं रोती और सोचती
बहुत अन्याय हो रहा है
मुझ पर...

आज
बेटी को सिखाते
घर का काम
माँ याद आती है...।