भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"यक़ीनन शायरी की इल्म जिसके पास होती वह / रवीन्द्र प्रभात" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात }} {{KKCatGhazal}} <poem> किसी दरिया , किसी म…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:06, 4 फ़रवरी 2010 का अवतरण
किसी दरिया , किसी मझदार से नफरत नहीं करता ।
सही तैराक हो तो धार से नफरत नहीं करता । ।
यक़ीनन शायरी की इल्म जिसके पास होती वह -
किसी नुक्कड़ , किसी किरदार से नफरत नहीं करता।
परिन्दों की तरह जिसने गुजारी जिन्दगी अपनी -
गुलाबों के सफ़र में खार से नफरत नहीं करता ।
चलो अच्छा हुआ तुमने बहारों को नहीं समझा -
नहीं तो इस क़दर पतझार से नफरत नहीं करता।
फटे कपड़ों से तेरी आबरू ग़र झांकती होती-
मियां परभात तू बीमार से नफरत नहीं करता । ।