भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मसलों से ग्रस्त है जब आदमी इस देश में / रवीन्द्र प्रभात" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात }} {{KKCatGhazal}} <poem> मसलों से ग्रस्त है…) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
<poem> | <poem> | ||
मसलों से ग्रस्त है जब आदमी इस देश में , | मसलों से ग्रस्त है जब आदमी इस देश में , | ||
− | |||
किस बात की चर्चा करें आज के परिवेश में ? | किस बात की चर्चा करें आज के परिवेश में ? | ||
कल तक जो पोषक थे, आज शोषक बन गए- | कल तक जो पोषक थे, आज शोषक बन गए- | ||
− | |||
कौन करता है यकीं इस गांधी के उपदेश में ? | कौन करता है यकीं इस गांधी के उपदेश में ? | ||
माहौल को अशांत कर शांति का उपदेश दे, | माहौल को अशांत कर शांति का उपदेश दे, | ||
− | |||
घूमते हैं चोर - डाकू साधुओं के वेश में । | घूमते हैं चोर - डाकू साधुओं के वेश में । | ||
कोशिशें कर ऎसी जिससे शांति का उद्घोष हो , | कोशिशें कर ऎसी जिससे शांति का उद्घोष हो , | ||
− | |||
हर तरफ अमनों-अमां हो गांधी के इस देश में । | हर तरफ अमनों-अमां हो गांधी के इस देश में । | ||
है कोई वक्तव्य जो पैगाम दे सद्भावना का , | है कोई वक्तव्य जो पैगाम दे सद्भावना का , | ||
− | |||
बस यही है हठ छिपा 'प्रभात'के संदेश में । | बस यही है हठ छिपा 'प्रभात'के संदेश में । | ||
<poem> | <poem> |
17:33, 5 फ़रवरी 2010 का अवतरण
मसलों से ग्रस्त है जब आदमी इस देश में ,
किस बात की चर्चा करें आज के परिवेश में ?
कल तक जो पोषक थे, आज शोषक बन गए-
कौन करता है यकीं इस गांधी के उपदेश में ?
माहौल को अशांत कर शांति का उपदेश दे,
घूमते हैं चोर - डाकू साधुओं के वेश में ।
कोशिशें कर ऎसी जिससे शांति का उद्घोष हो ,
हर तरफ अमनों-अमां हो गांधी के इस देश में ।
है कोई वक्तव्य जो पैगाम दे सद्भावना का ,
बस यही है हठ छिपा 'प्रभात'के संदेश में ।