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"रस के प्रयोगनि के सुखद सु जोगनि के / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर

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रस के प्रयोगनि के सुखद सु जोगनि के,
जेते उपचार चारु मंजु सुखदाई हैं ।
तिनके चलावन की चरचा चलावै कौन,
देत ना सुदर्शन हूँ यौं सुधि सिराई हैं ॥
करत उपाय ना सुभाय लखि नारिनि को,
भाय क्यौं अनारिनि कौ भरत कन्हाई हैं ।
ह्याँ तौ विषमज्वर-वियोग की चढ़ाई भई,
पाती कौन रोग की पठावत दवाई है ॥34॥