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"एक दिन / आलोक श्रीवास्तव-२" के अवतरणों में अंतर

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14:44, 10 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

प्यार
पीड़ा ही छोड़ जाता है एक दिन
इस पीड़ा को अर्थ देने में
फिर बीतती है जिन्दगी
धूप की फूल की
हल्की उड़ती हवा की
भाषा समझ में आने लगती है
प्यार तरह-तरह से
उद्भाषित होता है
डूब जाता है शब्द
अर्थ में !