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"तुम्हारे रूप का गान / आलोक श्रीवास्तव-२" के अवतरणों में अंतर
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+ | नहीं विरह का नहीं | ||
+ | आज गान है तुम्हारे रूप का | ||
+ | काल को पराजित करती | ||
+ | तुम्हारी अमर छवि का | ||
+ | नहीं, विरह का नहीं | ||
+ | मेरे रूप-दग्ध शब्दों में | ||
+ | स्वप्न की लय-ताल पर | ||
+ | गान है आज | ||
+ | रूप का, यौवन का | ||
+ | जीवन का .... | ||
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15:33, 10 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
नहीं विरह का नहीं
गान है आज सपने का
एक नदी का, जल-फूल का
पानी पड़ती सवेरे की लाल रोशनी में
दिपदिपाते तुम्हारे चेहरे का
तुम्हारी आंख में उजागर सपने का
नहीं विरह का नहीं
आज गान है तुम्हारे रूप का
काल को पराजित करती
तुम्हारी अमर छवि का
नहीं, विरह का नहीं
मेरे रूप-दग्ध शब्दों में
स्वप्न की लय-ताल पर
गान है आज
रूप का, यौवन का
जीवन का ....