भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"क्या करें और कहाँ जाएँ बताए कोई / विनोद तिवारी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
क्या करें और कहाँ जाएँ बताए कोई | क्या करें और कहाँ जाएँ बताए कोई | ||
− | अपना | + | अपना ईमान बचा पाएँ बताए कोई |
दूर तक एक समन्दर-सा है लहराता हुआ | दूर तक एक समन्दर-सा है लहराता हुआ | ||
कैसे तूफ़ाँ से न घबराएँ बताए कोई | कैसे तूफ़ाँ से न घबराएँ बताए कोई | ||
− | भ्रष्ट | + | भ्रष्ट लोगों ने परस्पर प्रशस्तियाँ गाईं |
− | + | ||
क्यों न मिलती रहें सुविधाएँ बताए कोई | क्यों न मिलती रहें सुविधाएँ बताए कोई | ||
14:35, 12 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
क्या करें और कहाँ जाएँ बताए कोई
अपना ईमान बचा पाएँ बताए कोई
दूर तक एक समन्दर-सा है लहराता हुआ
कैसे तूफ़ाँ से न घबराएँ बताए कोई
भ्रष्ट लोगों ने परस्पर प्रशस्तियाँ गाईं
क्यों न मिलती रहें सुविधाएँ बताए कोई
सिर्फ़ आज़ादी हो, रोटी हो न कपड़ा न मकान
लोग फिर गाएँ या चिल्लाएँ बताए कोई