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"तू सदा ही बंधनों में ही व्यक्त है अभिव्यक्त है / हिमांशु पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर
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व्यथित मत हो
कि तू किसी के बंधनों में है,
अगर तू है हवा
तू सुगंधित है सुमन के सम्पुटों में बंद होकर
या अगर तू द्रव्य है निर्गंध कोई
सुगंधिका-सा बंद है मृग-नाभि में
या कवित है मुक्तछंदी तू अगर
मुक्त है आनन्द तेरा सरस छान्दिक बंधनों में
या अगर नक्षत्र है तू
परिधि-घूर्णन ही तुम्हारी लक्ष्य-गति है
या अगर तू आत्मा है
देंह के इस मृत्तिका घट में बंधी है,
मत व्यथित हो
कि तू सदा ही बंधनों में व्यक्त है, अभिव्यक्त है ।