भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"समयातीत पूर्ण-6 / कुमार सुरेश" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: 6. समयातीत पूर्ण <poem>हे विश्वरूप अर्जुन ने देखा दैदीप्यमान तुम्…)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[6. समयातीत पूर्ण ]]
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=कुमार सुरेश
 +
}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 
<poem>हे विश्वरूप  
 
<poem>हे विश्वरूप  
 
अर्जुन ने देखा   
 
अर्जुन ने देखा   

19:48, 24 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

हे विश्वरूप
अर्जुन ने देखा
दैदीप्यमान तुम्हें
तुमसे ही थीं दशों दिशायें
प्रकाशित इस तरह
जैसे उग आए हों हजारों सूर्य क्षितिज पर
तुम ही व्याप्त दिखे
सारे आकाश सारे लोक
और बीच के सारे अवकाश में
 
हे स्वप्रकाशित
हम पहचाने नहीं तुम्हें
जब तुम सशरीर थे
आज भी तुम अशरीरी को
नहीं पहचानते हम
 
हे परम चेतना !
दैदीप्यमान तुम
दसों दिशाओं को
करते प्रकाशित
और प्रकाश देखा मात्र अर्जुन ने
शेष अठारह अक्षौहिणी
कैद रहे अपने-अपने अन्धकार में
सूरज खड़ा इंतज़ार करता रहा
वही अठारह अक्षौहिणी
जो सूरज को प्रतीक्षा कराते हैं
फ़ैल गए हैं सारे संसार में
वही तो हम हैं
आज भी चक्षु नहीं हैं हमारे पास
हमें दृष्टि दान
क्यों नहीं देते
हे गोविन्द ?