भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मैं कब से गोश बर-आवाज़ हूँ पुकारो भी / अहमद नदीम क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
[[Category:ग़ज़ल]] | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
<poem> | <poem> | ||
− | मैं कब से गोश-बर-आवाज़ हूँ पुकारो भी | + | मैं कब से गोश-बर-आवाज़<ref>उम्मीद में</ref> हूँ पुकारो भी |
ज़मीं पर यह सितारे कभी उतारो भी | ज़मीं पर यह सितारे कभी उतारो भी | ||
− | मेरी गय्यूर उमंगो, शबाब फानी है | + | मेरी गय्यूर<ref>गैर</ref> उमंगो, शबाब फानी है |
गुरूर-ए-इश्क़ का देरीना खेल हारो भी | गुरूर-ए-इश्क़ का देरीना खेल हारो भी | ||
भटक रहा है धुन्धल्कों में कारवान-ए-ख़याल | भटक रहा है धुन्धल्कों में कारवान-ए-ख़याल | ||
− | बस अब खुदा के लिए काकुलें संवारो भी | + | बस अब खुदा के लिए काकुलें<ref>लटें, ज़ुल्फें</ref> संवारो भी |
− | मेरी तलाश की मेराज हो तुम्हीं लेकिन | + | मेरी तलाश की मेराज<ref>ऊँचाई</ref> हो तुम्हीं लेकिन |
नकाब उठाओ, निशान-ए-सफ़र उभारो भी | नकाब उठाओ, निशान-ए-सफ़र उभारो भी | ||
− | यह | + | यह कायनात, अजल से सुपुर्द-ए-इन्सां है |
मगर नदीम तुम इस बोझ को सहारो भी | मगर नदीम तुम इस बोझ को सहारो भी | ||
</poem> | </poem> | ||
− | + | {{KKMeaning}} |
03:04, 25 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
मैं कब से गोश-बर-आवाज़<ref>उम्मीद में</ref> हूँ पुकारो भी
ज़मीं पर यह सितारे कभी उतारो भी
मेरी गय्यूर<ref>गैर</ref> उमंगो, शबाब फानी है
गुरूर-ए-इश्क़ का देरीना खेल हारो भी
भटक रहा है धुन्धल्कों में कारवान-ए-ख़याल
बस अब खुदा के लिए काकुलें<ref>लटें, ज़ुल्फें</ref> संवारो भी
मेरी तलाश की मेराज<ref>ऊँचाई</ref> हो तुम्हीं लेकिन
नकाब उठाओ, निशान-ए-सफ़र उभारो भी
यह कायनात, अजल से सुपुर्द-ए-इन्सां है
मगर नदीम तुम इस बोझ को सहारो भी
शब्दार्थ
<references/>