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"शौक़ हर रंग रक़ीबे-सरो-सामां निकला / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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05:28, 27 फ़रवरी 2010 का अवतरण
शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला
क़ैस तसवीर के पर्दे में भी उरियाँ निकला
ज़ख़्म ने दाद न दी तंगी-ए-दिल की यारब
तीर भी सीना-ए-बिस्मिल से परअफ़्शाँ निकला
बू-ए-गुल नाला-ए-दिल दूद-ए-चराग़-ए-महफ़िल
जो तेरी बज़्म से निकला सो परिशाँ निकला
दिल-ए-हसरतज़दा था माईदा-ए-लज़्ज़त-ए-दर्द
काम यारों का बक़द्र-ए-लब-ओ-दंदाँ निकला
थी नौआमोज़-ए-फ़ना हिम्मत-ए-दुश्वारपसंद
सख़्त मुश्किल है कि ये काम भी आसाँ निकला
दिल में फिर गिरिया ने इक शोर उठाया "ग़ालिब"
आह जो क़तरा न निकला था सो तूफ़ाँ निकला