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"राधा नवेली सहेली समाज में / घनानंद" के अवतरणों में अंतर
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राधा नवेली सहेली समाज में, होरी कौ साज सजें अतो सोहै ।
मोहन छैल खिलार तहाँ रस-प्यास भरी अँखियान सों जोहै ॥
डीठि मिलें, मुरि पीठि दई, हिय-हेत की बात सकै कहि कोहै ।
सैनन ही बरस्यौ ’घनआनँद’, भीजनि पै रँग-रीझनि मोहै ॥