"हवस को है निशात-ए-कार / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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− | हवस को है | + | <poem>हवस को है निशाते-कार<ref>काम करने की उमंग</ref> क्या क्या |
− | न हो मरना तो जीने का मज़ा क्या | + | न हो मरना तो जीने का मज़ा क्या |
− | तजाहुल-पेशगी से | + | तजाहुल-पेशगी<ref>जान बूझ कर अनजान बनना</ref> से मुद्दआ<ref>मतलब</ref> क्या |
− | कहां तक | + | कहां तक ऐ सरापा-नाज़<ref>नखरे वाला</ref> क्या-क्या |
− | + | नवाज़िश-हाए-बेजा<ref>अनुचित कृपा</ref> देखता हूं | |
− | + | शिकायत-हाए-रंगीं का गिला क्या | |
− | निगाह-ए | + | निगाह-ए-बेमुहाबा<ref>निस्संकोच दृष्टि</ref> चाहता हूं |
− | + | तग़ाफ़ुल-हाए-तम्कीं-आज़मा<ref>सब्र का इम्तिहान लेनी वाली उपेक्षा</ref> क्या | |
− | + | फ़रोग़-ए-शोला-ए-ख़स<ref>तिनके की आग का प्रकाश</ref> यक-नफ़स है | |
− | हवस को पास-ए नामूस-ए वफ़ा | + | हवस को पास-ए-नामूस-ए-वफ़ा<ref>प्रेम का आदर</ref> क्या |
− | नफ़स मौज-ए मुहीत-ए | + | नफ़स मौज-ए-मुहीत-ए-बेखुदी<ref>मस्ती के समुद्र की तरंग</ref> है |
− | + | तग़ाफ़ुल-हाए-साक़ी<ref>साक़ी की उपेक्षा</ref> का गिला क्या | |
− | दिमाग़-ए | + | दिमाग़-ए-इत्र-ए-पैराहन नहीं है |
− | ग़म-ए | + | ग़म-ए-आवारगी-हाए-सबा<ref>सुबह की आवारगी का दुख</ref> क्या |
− | दिल-ए हर क़तरा है साज़-ए | + | दिल-ए-हर-क़तरा है साज़-ए-अनल-बहर<ref>'मैं समुद्र हूँ' की आवाज़</ref> |
− | हम उस के हैं हमारा पूछना क्या | + | हम उस के हैं हमारा पूछना क्या |
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− | + | शहादान-ए-निगह<ref>नज़र के मारे हुए</ref> का ख़ूं बहा<ref>(ख़ून की)कीमत</ref> क्या | |
− | सुन ऐ | + | सुन ऐ ग़ारतगर-ए-जिन्स-ए-वफ़ा<ref>प्रेम-रूपी धन का चोर</ref> सुन |
− | शिकस्त-ए क़ीमत-ए दिल की सदा क्या | + | शिकस्त<ref>हार</ref>-ए-क़ीमत-ए-दिल की सदा क्या |
− | किया किस ने | + | किया किस ने ज़िगरदारी<ref>सहनशीलता का दावा</ref> का दावा |
− | + | शिकेबे-ख़ातिर-ए-आशिक़<ref>प्रेमी का संतोष</ref> भला क्या | |
− | + | ये क़ातिल वादा-ए-सब्र-आज़मा क्यूं | |
− | + | ये काफ़िर फ़ित्ना-ए-ताक़तरुबा<ref>शक्ति चुराने वाला फसाद</ref> क्या | |
− | बला-ए जां है ग़ालिब उस की हर बात | + | बला-ए-जां है ग़ालिब उस की हर बात |
− | इबारत क्या इशारत क्या अदा क्या | + | इबारत<ref>लिखावट</ref> क्या, इशारत<ref>संकेत</ref> क्या, अदा क्या</poem> |
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08:34, 28 फ़रवरी 2010 का अवतरण
हवस को है निशाते-कार<ref>काम करने की उमंग</ref> क्या क्या
न हो मरना तो जीने का मज़ा क्या
तजाहुल-पेशगी<ref>जान बूझ कर अनजान बनना</ref> से मुद्दआ<ref>मतलब</ref> क्या
कहां तक ऐ सरापा-नाज़<ref>नखरे वाला</ref> क्या-क्या
नवाज़िश-हाए-बेजा<ref>अनुचित कृपा</ref> देखता हूं
शिकायत-हाए-रंगीं का गिला क्या
निगाह-ए-बेमुहाबा<ref>निस्संकोच दृष्टि</ref> चाहता हूं
तग़ाफ़ुल-हाए-तम्कीं-आज़मा<ref>सब्र का इम्तिहान लेनी वाली उपेक्षा</ref> क्या
फ़रोग़-ए-शोला-ए-ख़स<ref>तिनके की आग का प्रकाश</ref> यक-नफ़स है
हवस को पास-ए-नामूस-ए-वफ़ा<ref>प्रेम का आदर</ref> क्या
नफ़स मौज-ए-मुहीत-ए-बेखुदी<ref>मस्ती के समुद्र की तरंग</ref> है
तग़ाफ़ुल-हाए-साक़ी<ref>साक़ी की उपेक्षा</ref> का गिला क्या
दिमाग़-ए-इत्र-ए-पैराहन नहीं है
ग़म-ए-आवारगी-हाए-सबा<ref>सुबह की आवारगी का दुख</ref> क्या
दिल-ए-हर-क़तरा है साज़-ए-अनल-बहर<ref>'मैं समुद्र हूँ' की आवाज़</ref>
हम उस के हैं हमारा पूछना क्या
मुहाबा<ref>शील,मान</ref> क्या है मैं ज़ामिन<ref>यकीनन</ref> इधर देख
शहादान-ए-निगह<ref>नज़र के मारे हुए</ref> का ख़ूं बहा<ref>(ख़ून की)कीमत</ref> क्या
सुन ऐ ग़ारतगर-ए-जिन्स-ए-वफ़ा<ref>प्रेम-रूपी धन का चोर</ref> सुन
शिकस्त<ref>हार</ref>-ए-क़ीमत-ए-दिल की सदा क्या
किया किस ने ज़िगरदारी<ref>सहनशीलता का दावा</ref> का दावा
शिकेबे-ख़ातिर-ए-आशिक़<ref>प्रेमी का संतोष</ref> भला क्या
ये क़ातिल वादा-ए-सब्र-आज़मा क्यूं
ये काफ़िर फ़ित्ना-ए-ताक़तरुबा<ref>शक्ति चुराने वाला फसाद</ref> क्या
बला-ए-जां है ग़ालिब उस की हर बात
इबारत<ref>लिखावट</ref> क्या, इशारत<ref>संकेत</ref> क्या, अदा क्या