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"गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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09:01, 28 फ़रवरी 2010 का अवतरण

गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा<ref>जगह की तंगी</ref> का
गुहर<ref>मोती</ref> में मह्व <ref>लीन</ref> हुआ इज़्तराब<ref>तड़प</ref> दरिया का

ये जानता हूँ कि तू और पासुख़े-मकतूब<ref>ख़त का जवाब</ref>
मगर सितमज़दा<ref>सताया हुआ</ref> हूँ ज़ौक़े-ख़ामा-फ़र्सा<ref>लिखने की आदत</ref>का

हिना-ए-पा-ए-ख़िज़ां<ref>पतझड़ के पैरों की मेंहदी</ref> है बहार अगर है यही
दवाम<ref>हमेशा</ref> क़ुल्फ़ते-ख़ातिर<ref>दुख, क्लेश के लिए</ref> है ऐश दुनिया का

ग़मे-फ़िराक़<ref>विरह के दु:ख</ref>में तकलीफ़-सैरे-बाग़ <ref>बाग़ में सैर का कष्ट</ref>न दो
मुझे दिमाग़ नहीं ख़न्दा हाए-बेजा<ref>अकारण हँसना </ref> का

हनोज़<ref>अभी</ref> महरमी-ए-हुस्न<ref>रूप से परिचय</ref> को तरसता हूँ
करे है हर बुने-मू<ref>केश-राशि</ref> काम चश्मे-बीना<ref>देख सकने वाली आँख</ref> का

दिल उसको पहले ही नाज़ो-अदा से दे बैठे
हमें दिमाग़ कहां हु्स्न के तक़ाज़ा का

न कह कि गिरियां<ref>रुदन</ref> बमिक़दारे-हसरते-दिल<ref>दिल की हसरत के अनुपात से</ref> है
मेरी निगाह में है जमओ़-ख़र्च<ref>उतार-चढ़ाव</ref> दरिया का

फ़लक को देखके करता हूँ उसको याद ‘असद’
जफ़ा में उसकी है अन्दाज़<ref>ढंग</ref> कारफ़रमा<ref>प्रियवर</ref> का

शब्दार्थ
<references/>