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"कहाँ जा रहा है तू ऐ जाने वाले / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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'''गीतकार : शैलेन्द्र
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कहाँ जा रहा है तू ऐ जाने वाले
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ये जीवन सफ़र एक अंधा सफ़र है
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बहकना है मुमकिन भटकने का डर है
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कहाँ जा रहा है ...
  
अब के बरस भेज भैया को बाबुल
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जो ठोकर न खाए नहीं जीत उसकी
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जो गिर के सम्भल जाए है जीत उसकी
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निशां मंज़िलों के ये पैरों के छाले
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कहाँ जा रहा है ...
  
सावन में लीजो बुलाय रे
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कभी ये भी सोचा कि मंज़िल कहाँ है
 
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बड़े से जहां में तेरा घर कहाँ है
लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियाँ
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जो बाँधे थे बंधन वो क्यों तोड़ डाले
 
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कहाँ जा रहा है ...
देजो संदेशा भिजाये रे
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अब के बरस भेज भैय्या को बाबुल ...
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अम्बुवा तले फिर से झूले पड़ेंगे
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रिमझिम पड़ेंगी फुहारें
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लौटेंगी फिर तेरे आंगन में  
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बाबुल सावन की ठंडी बहारें
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छलके नयन मोरा कसके रे जियरा
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बचपन की जब याद आए रे
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अब के बरस भेज भैय्या को बाबुल ...
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बैरन जवानी ने छीने खिलौने
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और मेरी गुड़िया चुराई
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बाबुल थी मैं तेरे नाज़ों की पाली
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फिर क्यों हुई मैं पराई
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बीते रे जग कोई चिठिया न पाती
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न कोई नैहर से आये,रे
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अब के बरस भेज भैय्या को बाबुल ...-
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10:28, 1 मार्च 2010 के समय का अवतरण

कहाँ जा रहा है तू ऐ जाने वाले
अँधेरा है मन का दिया तो जला ले
कहाँ जा रहा है ...

ये जीवन सफ़र एक अंधा सफ़र है
बहकना है मुमकिन भटकने का डर है
सम्भलता नहीं दिल किसी के सम्भाले
कहाँ जा रहा है ...

जो ठोकर न खाए नहीं जीत उसकी
जो गिर के सम्भल जाए है जीत उसकी
निशां मंज़िलों के ये पैरों के छाले
कहाँ जा रहा है ...

कभी ये भी सोचा कि मंज़िल कहाँ है
बड़े से जहां में तेरा घर कहाँ है
जो बाँधे थे बंधन वो क्यों तोड़ डाले
कहाँ जा रहा है ...