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"वै तो बस बसन रँगावैं मन रँगत ये / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर

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वै तो बस बसन रँगावैं मन रँगत ये,
 
वै तो बस बसन रँगावैं मन रँगत ये,
भसम रमावैं वे ये आपुहीं भसम हैं ।
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:भसम रमावैं वे ये आपुहीं भसम हैं ।
 
सांस-सांस माहिं बहु बासन बितावत वे
 
सांस-सांस माहिं बहु बासन बितावत वे
इनकै प्रत्येक सांस जात ज्यों जनम हैं ॥
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:इनकै प्रत्येक सांस जात ज्यों जनम हैं ॥
 
ह्वै कै जग-भुक्ति सौं बिरक्त मुक्ति चाहत वे
 
ह्वै कै जग-भुक्ति सौं बिरक्त मुक्ति चाहत वे
जानत ये भुक्ति मुक्ति दोऊ विष सम हैं ।
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:जानत ये भुक्ति मुक्ति दोऊ विष सम हैं ।
 
करिकै बिचार सूधौ उधौ मन माहिं लखौ
 
करिकै बिचार सूधौ उधौ मन माहिं लखौ
जोगी सौं वियोग-भोग-भोगी कहा कम हैं ॥47॥
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:जोगी सौं वियोग-भोग-भोगी कहा कम हैं ॥47॥
 
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09:08, 2 मार्च 2010 के समय का अवतरण

वै तो बस बसन रँगावैं मन रँगत ये,
भसम रमावैं वे ये आपुहीं भसम हैं ।
सांस-सांस माहिं बहु बासन बितावत वे
इनकै प्रत्येक सांस जात ज्यों जनम हैं ॥
ह्वै कै जग-भुक्ति सौं बिरक्त मुक्ति चाहत वे
जानत ये भुक्ति मुक्ति दोऊ विष सम हैं ।
करिकै बिचार सूधौ उधौ मन माहिं लखौ
जोगी सौं वियोग-भोग-भोगी कहा कम हैं ॥47॥