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"कान्ह-दूत कैंधौं ब्रह्म-दूत ह्वै पधारे आप / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर
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कान्ह-दूत कैंधौं ब्रह्म-दूत ह्वै पधारे आप, | कान्ह-दूत कैंधौं ब्रह्म-दूत ह्वै पधारे आप, | ||
− | धारे प्रन फेरन को मति ब्रजवारी की । | + | ::धारे प्रन फेरन को मति ब्रजवारी की । |
कहै रतनाकर पै प्रीति रीति जानत ना, | कहै रतनाकर पै प्रीति रीति जानत ना, | ||
− | ठानत अनीति आनि नीति लै अनारी की ॥ | + | ::ठानत अनीति आनि नीति लै अनारी की ॥ |
मान्यौ हम, कान्ह ब्रह्म एक ही, कह्यौ जो तुम, | मान्यौ हम, कान्ह ब्रह्म एक ही, कह्यौ जो तुम, | ||
− | तौहूँ हमें भावति ना भावना अन्यारी की । | + | ::तौहूँ हमें भावति ना भावना अन्यारी की । |
जैहे बनि बिगरि न वारिधिता वारिधि की, | जैहे बनि बिगरि न वारिधिता वारिधि की, | ||
− | बूँदता बिलैहैं बूँद बिबस बिचारी की ॥37॥ | + | ::बूँदता बिलैहैं बूँद बिबस बिचारी की ॥37॥ |
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09:17, 2 मार्च 2010 के समय का अवतरण
कान्ह-दूत कैंधौं ब्रह्म-दूत ह्वै पधारे आप,
धारे प्रन फेरन को मति ब्रजवारी की ।
कहै रतनाकर पै प्रीति रीति जानत ना,
ठानत अनीति आनि नीति लै अनारी की ॥
मान्यौ हम, कान्ह ब्रह्म एक ही, कह्यौ जो तुम,
तौहूँ हमें भावति ना भावना अन्यारी की ।
जैहे बनि बिगरि न वारिधिता वारिधि की,
बूँदता बिलैहैं बूँद बिबस बिचारी की ॥37॥