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"पंच तत्त्व मैं जो सच्चिदानन्द की सत्ता सो तौ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर
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पंच तत्त्व मैं जो सच्चिदानन्द की सत्ता सो तौ, | पंच तत्त्व मैं जो सच्चिदानन्द की सत्ता सो तौ, | ||
− | हम तुम उनमैं समान ही समोई है । | + | ::हम तुम उनमैं समान ही समोई है । |
कहै रतनाकर विभूति पंच-भूत हूँ की, | कहै रतनाकर विभूति पंच-भूत हूँ की, | ||
− | एक ही सी सकल प्रभूतनि मैं पोई है ॥ | + | ::एक ही सी सकल प्रभूतनि मैं पोई है ॥ |
माया के प्रंपच ही सौं भासत प्रभेद सबै, | माया के प्रंपच ही सौं भासत प्रभेद सबै, | ||
− | काँच-फलकानि ज्यौं अनेक एक सोई है । | + | ::काँच-फलकानि ज्यौं अनेक एक सोई है । |
देखौं भ्रम-पटल उघारि ज्ञान आँखिनि सौं, | देखौं भ्रम-पटल उघारि ज्ञान आँखिनि सौं, | ||
− | कान्ह सब ही मैं कान्हा ही में सब कोई है ॥31॥ | + | ::कान्ह सब ही मैं कान्हा ही में सब कोई है ॥31॥ |
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09:19, 2 मार्च 2010 के समय का अवतरण
पंच तत्त्व मैं जो सच्चिदानन्द की सत्ता सो तौ,
हम तुम उनमैं समान ही समोई है ।
कहै रतनाकर विभूति पंच-भूत हूँ की,
एक ही सी सकल प्रभूतनि मैं पोई है ॥
माया के प्रंपच ही सौं भासत प्रभेद सबै,
काँच-फलकानि ज्यौं अनेक एक सोई है ।
देखौं भ्रम-पटल उघारि ज्ञान आँखिनि सौं,
कान्ह सब ही मैं कान्हा ही में सब कोई है ॥31॥