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"सोई कान्ह सोई तुम सोई सबही हैं लखौ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर

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सोई कान्ह सोई तुम सोई सबही हैं लखौ,
 
सोई कान्ह सोई तुम सोई सबही हैं लखौ,
घट-घट-अन्तर अनन्त स्यामघन कौं ।
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::घट-घट-अन्तर अनन्त स्यामघन कौं ।
 
कहै रतनाकर न भेद-भावना सौं भरौ,
 
कहै रतनाकर न भेद-भावना सौं भरौ,
बारिधि और बूँद के बिचारि बिछुरन कौं ॥
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::बारिधि और बूँद के बिचारि बिछुरन कौं ॥
 
अबिचल चाहत मिलाप तौ बिलाप त्यागि,
 
अबिचल चाहत मिलाप तौ बिलाप त्यागि,
जोग-जुगती करि जुगावौ ज्ञान-धन कौं ।
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::जोग-जुगती करि जुगावौ ज्ञान-धन कौं ।
 
जीव आत्मा कौं परमात्मा मैं लीन करौ,
 
जीव आत्मा कौं परमात्मा मैं लीन करौ,
छीन करौं तन कौं न दीन करौ मन कौं ॥32॥
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::छीन करौं तन कौं न दीन करौ मन कौं ॥32॥
 
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09:19, 2 मार्च 2010 के समय का अवतरण

सोई कान्ह सोई तुम सोई सबही हैं लखौ,
घट-घट-अन्तर अनन्त स्यामघन कौं ।
कहै रतनाकर न भेद-भावना सौं भरौ,
बारिधि और बूँद के बिचारि बिछुरन कौं ॥
अबिचल चाहत मिलाप तौ बिलाप त्यागि,
जोग-जुगती करि जुगावौ ज्ञान-धन कौं ।
जीव आत्मा कौं परमात्मा मैं लीन करौ,
छीन करौं तन कौं न दीन करौ मन कौं ॥32॥