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"न हुई गर मेरे मरने से तसल्ली न सही / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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06:09, 3 मार्च 2010 का अवतरण
न हुई गर मेरे मरने से तसल्ली न सही
इम्तिहां और भी बाक़ी हो तो ये भी न सही
ख़ार ख़ार-ए-अलम-ए-हसरत-ए-दीदार तो है
शौक़ गुलचीन-ए-गुलिस्तान-ए-तसल्ली न सही
मय-परस्तां ख़ुम-ए-म मुँह से लगाये ही बने
एक दिन गर न हुआ बज़्म में साक़ी न सही
नफ़ज़-ए-क़ैस के है चश्म-ओ-चराग़-ए-सहरा
गर नहीं शम-ए-सियहख़ाना-ए-लैला न सही
एक हंगामे पे मौकूफ़ है घर की रौनक
नोह-ए-ग़म ही सही, नग़्मा-ए-शादी न सही
न सिताइश की तमन्ना न सिले की परवाह
गर नहीं है मेरे अश'आर में माने न सही
इशरत-ए-सोहबत-ए-ख़ुबाँ ही ग़नीमत समझो
न हुई "ग़ालिब" अगर उम्र-ए-तबीई न सही
शब्दार्थ
<references/>