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"वो आके ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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09:02, 3 मार्च 2010 का अवतरण
वो आके ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे
वले मुझे तपिश-ए-दिल मजाल-ए-ख़्वाब तो दे
करे है क़त्ल लगावट में तेरा रो देना
तेरी तरह कोई तेग़े-निगह की आब तो दे
दिखाके जुम्बिशे-लब ही तमाम कर हमको
न दे जो बोसा, तो मुंह से कहीं जवाब तो दे
पिला दे ओक से साक़ी जो हमसे नफ़रत है
प्याला गर नहीं देता न दे शराब तो दे
"असद" ख़ुशी से मेरे हाथ-पाँव फूल गए
कहा जो उसने, ज़रा मेरे पाँव दाब तो दे