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"वो आके ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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<poem>वो आके ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे
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वले मुझे तपिश-ए-दिल मजाल-ए-ख़्वाब तो दे
  
वो आके ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे <br>
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करे है क़त्ल लगावट में तेरा रो देना
वले मुझे तपिश-ए-दिल मजाल-ए-ख़्वाब तो दे <br><br>
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तेरी तरह कोई तेग़े-निगह की आब तो दे  
  
करे है क़त्ल लगावट में तेरा रो देना <br>
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दिखाके जुम्बिशे-लब ही तमाम कर हमको
तेरी तरह कोई तेग़-ए-निगाह को आब तो दे <br><br>
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न दे जो बोसा, तो मुंह से कहीं जवाब तो दे  
  
दिखा के जुम्बिश-ए-लब ही तमाम कर हमको <br>
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पिला दे ओक से साक़ी जो हमसे नफ़रत है
न दे जो बोसा तो मूँह से कहीं जवाब तो दे <br><br>
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प्याला गर नहीं देता न दे शराब तो दे  
  
पिला दे ओअक से साक़ी जो हमसे नफ़्रत है <br>
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"असद" ख़ुशी से मेरे हाथ-पाँव फूल गए  
प्याला गर नहीं देता न दे, शराब तो दे <br><br>
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कहा जो उसने, ज़रा मेरे पाँव दाब तो दे </poem>
 
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"असद" ख़ुशी से मेरे हाथ पाँव फूल गए <br>
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कहा जो उस ने ज़रा मेरे पाँव दाब तो दे <br><br>
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09:02, 3 मार्च 2010 का अवतरण

वो आके ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे
वले मुझे तपिश-ए-दिल मजाल-ए-ख़्वाब तो दे

करे है क़त्ल लगावट में तेरा रो देना
तेरी तरह कोई तेग़े-निगह की आब तो दे

दिखाके जुम्बिशे-लब ही तमाम कर हमको
न दे जो बोसा, तो मुंह से कहीं जवाब तो दे

पिला दे ओक से साक़ी जो हमसे नफ़रत है
प्याला गर नहीं देता न दे शराब तो दे

"असद" ख़ुशी से मेरे हाथ-पाँव फूल गए
कहा जो उसने, ज़रा मेरे पाँव दाब तो दे