"दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिये / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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09:14, 3 मार्च 2010 का अवतरण
दिया है दिल अगर उसको, बशर<ref>मनुष्य</ref> है क्या कहिये
हुआ रक़ीब तो हो, नामाबर है, क्या कहिये
ये ज़िद, कि आज न आवे और आये बिन न रहे
क़ज़ा से शिकवा हमें किस क़दर है क्या कहिये
रहे है यों गहो-बेगह<ref>समय-असमय</ref> कि कूए-दोस्त को अब
अगर न कहिये कि दुश्मन का घर है, क्या कहिये
ज़हे-करिश्मा, कि यों दे रखा है हमको फ़रेब
कि बिन कहे ही उन्हें सब ख़बर है, क्या कहिये
समझ के करते हैं बाज़ार में वो पुर्सिश-ए-हाल
कि ये कहे कि सर-ए-रहगुज़र है, क्या कहिये
तुम्हें नहीं है सर-ए-रिश्ता-ए-वफ़ा का ख़याल
हमारे हाथ में कुछ है, मगर है क्या, कहिये
उन्हें सवाल पे ज़ोअ़मे-जुनूं<ref>उन्माद का घमंड</ref> है, क्यूँ लड़िये
हमें जवाब से क़तअ़ए-नज़र है, क्या कहिये
हसद सज़ा-ए-कमाल-ए-सुख़न है, क्या कीजे
सितम, बहा-ए-मताअ़-ए-हुनर<ref>कलारूपी निधि</ref> है, क्या कहिये
कहा है किसने कि "ग़ालिब" बुरा नहीं लेकिन
सिवाय इसके कि आशुफ़्ता-सर है क्या कहिये