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"सत्रह साल की लड़की / नीलेश रघुवंशी" के अवतरणों में अंतर

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सत्रह साल की लड़की के स्वपन में  
 
सत्रह साल की लड़की के स्वपन में  
 
 
आसमान नहीं है
 
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पेड़, पहाड़ और तपती दोपहर नहीं
 
पेड़, पहाड़ और तपती दोपहर नहीं
 
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सुबह की एक आँच भी नहीं
सुबह की एक कआँच भी नहीं
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घर में फुदकती चिड़िया-सी लड़की
 
घर में फुदकती चिड़िया-सी लड़की
 
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सपना देखती है बस
सपना देखती है बसस
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अठारह की होने और घर बसाने का ।
 
अठारह की होने और घर बसाने का ।
 
 
  
 
लड़की ने तलाशा सुख
 
लड़की ने तलाशा सुख
 
 
हमेशा औरों में
 
हमेशा औरों में
 
 
खुद में कभी कुछ तलाशा ही नहीं
 
खुद में कभी कुछ तलाशा ही नहीं
 
 
सिखाया गया उसे हर वक़्त यही
 
सिखाया गया उसे हर वक़्त यही
 
 
लड़की का सुख चारदीवारी के भीतर है
 
लड़की का सुख चारदीवारी के भीतर है
 
 
सोचती है लड़की
 
सोचती है लड़की
 
 
सिर्फ़ एक घर के बारे में ।
 
सिर्फ़ एक घर के बारे में ।
 
 
  
 
लड़की जो घर की उजास है
 
लड़की जो घर की उजास है
 
 
हो जाएगी एक दिन ख़ामोश नदी  
 
हो जाएगी एक दिन ख़ामोश नदी  
 
 
ख़ामोशी से करेगी सारे कामकाज
 
ख़ामोशी से करेगी सारे कामकाज
 
 
चाल में उसके नहीं होगी
 
चाल में उसके नहीं होगी
 
 
नृत्य की थिरकन
 
नृत्य की थिरकन
 
 
पाँव भारी होंगे पर थिरकेंगे कभी नहीं
 
पाँव भारी होंगे पर थिरकेंगे कभी नहीं
 
 
युगों-युगों तक रखेगी पाँव धीरे-धीरे
 
युगों-युगों तक रखेगी पाँव धीरे-धीरे
 
 
धरती पर चलते
 
धरती पर चलते
 
 
धरती के बारे में कभी नहीं  
 
धरती के बारे में कभी नहीं  
 
 
सोचेगी लड़की ।
 
सोचेगी लड़की ।
 
 
  
 
कभी नहीं चाहा लोगों ने
 
कभी नहीं चाहा लोगों ने
 
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लड़की भी बैठे पेड़ पर  
लड़की भी बैठे पेड़ पर ख़ुद लड़की ने नहीं चाहा कभी
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ख़ुद लड़की ने नहीं चाहा कभी
 
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चिडि़यों की तरह उड़ जाना
 
चिडि़यों की तरह उड़ जाना
 
 
नहीं चाहा छू लेना आकाश ।
 
नहीं चाहा छू लेना आकाश ।
 
 
  
 
कभी नहीं देख पाएगी लड़की  
 
कभी नहीं देख पाएगी लड़की  
 
 
आसमान से निकलती नदी
 
आसमान से निकलती नदी
 
 
नदी से निकलते पहाड़
 
नदी से निकलते पहाड़
 
 
पहाड़ों के ऊपर उड़ती चिड़िया
 
पहाड़ों के ऊपर उड़ती चिड़िया
 
 
नहीं आ पाएगी कभी
 
नहीं आ पाएगी कभी
 
 
लड़की की आँखों में ।
 
लड़की की आँखों में ।
 
 
  
 
ओ मेरी बहन की तरह
 
ओ मेरी बहन की तरह
 
 
सत्रह साल की लड़की
 
सत्रह साल की लड़की
 
 
दौड़ते हुए क्यों नहीं निकलत जाती
 
दौड़ते हुए क्यों नहीं निकलत जाती
 
 
मैदानों में
 
मैदानों में
 
 
क्यों नहीं छेड़ती कोई तान
 
क्यों नहीं छेड़ती कोई तान
 
 
तुम्हारे सपनों में क्यों नहीं है
 
तुम्हारे सपनों में क्यों नहीं है
 
 
कोई उछाल !
 
कोई उछाल !
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11:26, 3 मार्च 2010 के समय का अवतरण

सत्रह साल की लड़की के स्वपन में
आसमान नहीं है
पेड़, पहाड़ और तपती दोपहर नहीं
सुबह की एक आँच भी नहीं
घर में फुदकती चिड़िया-सी लड़की
सपना देखती है बस
अठारह की होने और घर बसाने का ।

लड़की ने तलाशा सुख
हमेशा औरों में
खुद में कभी कुछ तलाशा ही नहीं
सिखाया गया उसे हर वक़्त यही
लड़की का सुख चारदीवारी के भीतर है
सोचती है लड़की
सिर्फ़ एक घर के बारे में ।

लड़की जो घर की उजास है
हो जाएगी एक दिन ख़ामोश नदी
ख़ामोशी से करेगी सारे कामकाज
चाल में उसके नहीं होगी
नृत्य की थिरकन
पाँव भारी होंगे पर थिरकेंगे कभी नहीं
युगों-युगों तक रखेगी पाँव धीरे-धीरे
धरती पर चलते
धरती के बारे में कभी नहीं
सोचेगी लड़की ।

कभी नहीं चाहा लोगों ने
लड़की भी बैठे पेड़ पर
ख़ुद लड़की ने नहीं चाहा कभी
चिडि़यों की तरह उड़ जाना
नहीं चाहा छू लेना आकाश ।

कभी नहीं देख पाएगी लड़की
आसमान से निकलती नदी
नदी से निकलते पहाड़
पहाड़ों के ऊपर उड़ती चिड़िया
नहीं आ पाएगी कभी
लड़की की आँखों में ।

ओ मेरी बहन की तरह
सत्रह साल की लड़की
दौड़ते हुए क्यों नहीं निकलत जाती
मैदानों में
क्यों नहीं छेड़ती कोई तान
तुम्हारे सपनों में क्यों नहीं है
कोई उछाल !