"दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आये क्यों / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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− | दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आये | + | <poem>दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त<ref>पत्थर और ईंट</ref> दर्द से भर न आये क्यों |
− | रोएंगे हम हज़ार बार कोई हमें सताये | + | रोएंगे हम हज़ार बार कोई हमें सताये क्यों |
− | दैर नहीं हरम नहीं दर नहीं | + | दैर<ref>मंदिर</ref> नहीं, हरम<ref>काबा</ref> नहीं, दर नहीं, आस्तां<ref>चौखट</ref> नहीं |
− | बैठे हैं रहगुज़र पे हम ग़ैर हमें उठाये | + | बैठे हैं रहगुज़र पे हम, ग़ैर हमें उठाये क्यों |
− | जब वो जमाल-ए-दिलफ़रोज़, | + | जब वो जमाल-ए-दिलफ़रोज़<ref>मनोहर सौंदर्य</ref>, सूरते-मेह्रे-नीमरोज़ <ref>दोपहर के सूरज के समान</ref> |
− | आप ही हो | + | आप ही हो नज़ारा-सोज़, पर्दे में मुँह छिपाये क्यों |
− | दश्ना-ए-ग़म्ज़ा | + | दश्ना-ए-ग़म्ज़ा<ref>विलास की कटारी</ref> जांसितां<ref>जानलेवा</ref>, नावक-ए-नाज़<ref>नख़रे का तीर</ref> बे-पनाह |
− | तेरा ही अक्स-ए-रुख़ सही, सामने तेरे आये | + | तेरा ही अक्स-ए-रुख़<ref>चेहरे का प्रतिबिम्ब</ref> सही, सामने तेरे आये क्यों |
− | + | क़ैदे-हयातो<ref>जीवन का बंधन</ref>-बन्दे-ग़म<ref>दुःख का बंधन</ref> अस्ल में दोनों एक हैं | |
− | मौत से पहले आदमी ग़म से | + | मौत से पहले आदमी ग़म से निजात पाये क्यों |
− | हुस्न और | + | हुस्न और उसपे हुस्न-ज़न<ref>अच्छी भावनाएं</ref> रह गई बुल्हवस<ref>तीव्र लालसा रखने वाला</ref> की शर्म |
− | अपने पे | + | अपने पे एतमाद है ग़ैर को आज़माये क्यों |
− | वां वो ग़ुरूर-ए-इज़्ज़-ओ-नाज़ यां ये हिजाब-ए-पास | + | वां वो ग़ुरूर-ए-इज़्ज़-ओ-नाज़<ref>सम्मान और रूप का अंहकार</ref> यां ये हिजाब-ए-पास-वज़अ़<ref>स्वाभिमान के स्वभाव की लज्जा</ref> |
− | राह में हम मिलें कहाँ, बज़्म में वो बुलायें | + | राह में हम मिलें कहाँ, बज़्म में वो बुलायें क्यों |
− | हाँ वो नहीं ख़ुदापरस्त, जाओ वो बेवफ़ा सही | + | हाँ वो नहीं ख़ुदापरस्त, जाओ वो बेवफ़ा सही |
− | जिसको हो दीन- | + | जिसको हो दीन-ओं-दिल अज़ीज़, उसकी गली में जाये क्यों |
− | "ग़ालिब"-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बन्द हैं | + | "ग़ालिब"-ए-ख़स्ता<ref>बुरी हालत वाला</ref> के बग़ैर कौन-से काम बन्द हैं |
− | + | रोइए ज़ार-ज़ार क्या, कीजिए हाय-हाय क्यों</poem> | |
+ | {{KKMeaning}} |
07:37, 5 मार्च 2010 के समय का अवतरण
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त<ref>पत्थर और ईंट</ref> दर्द से भर न आये क्यों
रोएंगे हम हज़ार बार कोई हमें सताये क्यों
दैर<ref>मंदिर</ref> नहीं, हरम<ref>काबा</ref> नहीं, दर नहीं, आस्तां<ref>चौखट</ref> नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पे हम, ग़ैर हमें उठाये क्यों
जब वो जमाल-ए-दिलफ़रोज़<ref>मनोहर सौंदर्य</ref>, सूरते-मेह्रे-नीमरोज़ <ref>दोपहर के सूरज के समान</ref>
आप ही हो नज़ारा-सोज़, पर्दे में मुँह छिपाये क्यों
दश्ना-ए-ग़म्ज़ा<ref>विलास की कटारी</ref> जांसितां<ref>जानलेवा</ref>, नावक-ए-नाज़<ref>नख़रे का तीर</ref> बे-पनाह
तेरा ही अक्स-ए-रुख़<ref>चेहरे का प्रतिबिम्ब</ref> सही, सामने तेरे आये क्यों
क़ैदे-हयातो<ref>जीवन का बंधन</ref>-बन्दे-ग़म<ref>दुःख का बंधन</ref> अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से निजात पाये क्यों
हुस्न और उसपे हुस्न-ज़न<ref>अच्छी भावनाएं</ref> रह गई बुल्हवस<ref>तीव्र लालसा रखने वाला</ref> की शर्म
अपने पे एतमाद है ग़ैर को आज़माये क्यों
वां वो ग़ुरूर-ए-इज़्ज़-ओ-नाज़<ref>सम्मान और रूप का अंहकार</ref> यां ये हिजाब-ए-पास-वज़अ़<ref>स्वाभिमान के स्वभाव की लज्जा</ref>
राह में हम मिलें कहाँ, बज़्म में वो बुलायें क्यों
हाँ वो नहीं ख़ुदापरस्त, जाओ वो बेवफ़ा सही
जिसको हो दीन-ओं-दिल अज़ीज़, उसकी गली में जाये क्यों
"ग़ालिब"-ए-ख़स्ता<ref>बुरी हालत वाला</ref> के बग़ैर कौन-से काम बन्द हैं
रोइए ज़ार-ज़ार क्या, कीजिए हाय-हाय क्यों