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"उम्र का भरोसा क्या पल का साथ हो जाए / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर
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16:43, 6 मार्च 2010 का अवतरण
उम्र का भरोसा क्या पल का साथ हो जाए
एक बार अकेले में उससे बात हो जाए
दिल के गुंग सरशारी उसको जीत ले लेकिन
अर्ज़ हाल करने में एहतियात हो जाए
ऐसा क्यों कि जाने से सिर्फ़ एक इन्सां के
सारी ज़िन्दगानी ही बेसबात हो जाए
याद करता जाए दिल और खिलता जाए दिल
ओस की तरह कोई पात पात हो जाए
सब चराग गुल करके उसका हाथ थामा था
क्या कसूर उसका जो बन में रात हो जाए
एक बार खेले तो वो मिरी तरह और फिर
जीत ले वो हर बाज़ी मुझको मात हो जाए
रात हो पड़ाव की फिर भी जागिये वरना
आप सोते रह जाएँ और घात हो जाए