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ज़फ़र / अरुण देव

No change in size, 15:36, 7 मार्च 2010
विरासत की महानता भारी होती है
ढहते ढहती सल्तनत के बेरंग तख़्त पर बैठ
ज़फ़र लिखने लगा था कविता
वह फकीराना बादशाह क्या करता शासन के उस गद्य का
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