"पहाडों में निष्क्रिय है देव / ओसिप मंदेलश्ताम" के अवतरणों में अंतर
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पहाड़ों में निष्क्रिय है देव, हालाँकि है पर्वत का वासी | पहाड़ों में निष्क्रिय है देव, हालाँकि है पर्वत का वासी | ||
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शांत,सुखी उन लोगों को वह, लगता है सच्चा-साथी | शांत,सुखी उन लोगों को वह, लगता है सच्चा-साथी | ||
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कंठहार-सी टप-टप टपके, उसकी गरदन से चरबी | कंठहार-सी टप-टप टपके, उसकी गरदन से चरबी | ||
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ज्वार-भाटे-से वह ले खर्राटें, काया भारी है ज्यूँ हाथी | ज्वार-भाटे-से वह ले खर्राटें, काया भारी है ज्यूँ हाथी | ||
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बचपन में उसे अति प्रिय थे, नीलकंठी सारंग-मयूर | बचपन में उसे अति प्रिय थे, नीलकंठी सारंग-मयूर | ||
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भरतदेश का इन्द्रधनु पसन्द था औ' लड्डू मोतीचूर | भरतदेश का इन्द्रधनु पसन्द था औ' लड्डू मोतीचूर | ||
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कुल्हिया भर-भर अरुण-गुलाबी पीता था वह दूध | कुल्हिया भर-भर अरुण-गुलाबी पीता था वह दूध | ||
− | + | लाह-कीटों<ref>पुराने ज़माने में लाह-कीटों से ही वह लाल रंग बनाया जाता था, जिससे कुम्हार कुल्हड़ों और मिट्टी के अन्य | |
− | लाह-कीटों का रुधिर ललामी, मिला उसे भरपूर | + | बर्तनों को रंगा करते थे ।</ref> का रुधिर ललामी, मिला उसे भरपूर |
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पर अस्थिपंजर अब ढीला उसका, कई गाँठों का जोड़ | पर अस्थिपंजर अब ढीला उसका, कई गाँठों का जोड़ | ||
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घुटने, हाथ, कंधे सब नकली, आदम का ओढे़ खोल | घुटने, हाथ, कंधे सब नकली, आदम का ओढे़ खोल | ||
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सोचे वह अपने हाड़ों से अब और महसूस करे कपाल | सोचे वह अपने हाड़ों से अब और महसूस करे कपाल | ||
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बस याद करे वे दिन पुराने, जब वह लगता था वेताल | बस याद करे वे दिन पुराने, जब वह लगता था वेताल | ||
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− | + | '''रचनाकाल''' : 10-26 दिसम्बर 1936 | |
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21:49, 7 मार्च 2010 का अवतरण
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(यह कविता स्तालिन के बारे में है)
पहाड़ों में निष्क्रिय है देव, हालाँकि है पर्वत का वासी
शांत,सुखी उन लोगों को वह, लगता है सच्चा-साथी
कंठहार-सी टप-टप टपके, उसकी गरदन से चरबी
ज्वार-भाटे-से वह ले खर्राटें, काया भारी है ज्यूँ हाथी
बचपन में उसे अति प्रिय थे, नीलकंठी सारंग-मयूर
भरतदेश का इन्द्रधनु पसन्द था औ' लड्डू मोतीचूर
कुल्हिया भर-भर अरुण-गुलाबी पीता था वह दूध
लाह-कीटों<ref>पुराने ज़माने में लाह-कीटों से ही वह लाल रंग बनाया जाता था, जिससे कुम्हार कुल्हड़ों और मिट्टी के अन्य
बर्तनों को रंगा करते थे ।</ref> का रुधिर ललामी, मिला उसे भरपूर
पर अस्थिपंजर अब ढीला उसका, कई गाँठों का जोड़
घुटने, हाथ, कंधे सब नकली, आदम का ओढे़ खोल
सोचे वह अपने हाड़ों से अब और महसूस करे कपाल
बस याद करे वे दिन पुराने, जब वह लगता था वेताल
{{KKMeaning}
रचनाकाल : 10-26 दिसम्बर 1936