"देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाये है / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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22:22, 7 मार्च 2010 का अवतरण
देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाये है
मैं उसे देखूँ भला कब मुझसे देखा जाये है
हाथ धो दिल से यही गर्मी गर अंदेशे में है
आबगीना तुंदी-ए-सहबा से पिघला जाये है
ग़ैर को यारब वो क्यों कर मना-ए-गुस्ताख़ी करे
गर हया भी उसको आती है तो शर्मा जाये है
शौक़ को ये लत के हरदम नाला ख़ेंचे जाईये
दिल कि वो हालत कि दम लेने से घबरा जाये है
दूर चश्म-ए-बद तेरी बज़्म-ए-तरब से वाह वाह
नग़्मा हो जाता है वाँ गर नाला मेरा जाये है
गर्चे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दादार-ए-राज़-ए-इश्क़
पर हम ऐसे खोये जाते हैं कि वो पा जाये है
उसकी बज़्माराईयाँ सुनकर दिल-ए-रंजूर याँ
मिस्ल-ए-नक़्श-ए-मुद्दआ-ए-ग़ैर बैठा जाये है
होके आशिक़ वो परीरुख़ और नाज़ुक बन गया
रंग खुलता जाये है जितना कि उड़ता जाये है
नक़्श को उसके मुसव्विर पर भी क्या क्या नाज़ है
खेंचता है जिस क़दर उतना ही खिंचता जाये है
साया मेरा मुझसे मिस्ल-ए-दूद भागे है 'असद'
पास मुझ आतिश ब-जाँ के किस से ठहरा जाये है