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22:23, 7 मार्च 2010 का अवतरण
बे-ऐतदालियों से, सुबुक<ref>लज्जित</ref> सब में हम हुए
जितने ज़ियादा हो गये उतने ही कम हुए
पिन्हां था दामे-सख़्त क़रीब आशियाने के
उड़ने न पाये थे कि गिरफ़्तार हम हुए
हस्ती हमारी अपनी फ़ना पर दलील है
यां तक मिटे कि आप हम अपनी क़सम हुए
सख़्ती-कशाने-इश्क़<ref>प्रेम का दुःख सहने वाले</ref> की पूछे है क्या ख़बर
वो लगा रफ़्ता-रफ़्ता सरापा अलम<ref>सर से पांव तक दुःख की मूर्ती</ref> हुए
तेरी वफ़ा से क्या हो तलाफ़ी, कि दहर में
तेरे सिवा भी हम पे बहुत-से सितम हुए
लिखते रहे जुनूं की हिकायत-ए-ख़ूंचकां<ref>रक्त-रंजित की कहानी</ref>
हरचंद उसमें हाथ हमारे क़लम<ref>कट जाना</ref> हुए
अल्ला-रे तेरी तुन्दी-ए-ख़ूं, जिस के बीम़<ref>भय</ref> से
अज्ज़ा-ए-नाला<ref>रुदन के टुकड़े</ref> दिल में मेरे रिज़्क़े-हम हुए
अहले हवस की फ़तह है, तर्क-ए-नवर्द-ए-इश्क़<ref>प्रेमोन्माद के संघर्ष को त्याग देना</ref>
जो पाँव उठ गए वही उन के अ़लम हुए
नाले अदम में चंद हमारे सुपुर्द थे
जो वां न खिंच सके सो वो यां आके दम<ref>सांस लेना</ref> हुए
छोड़ी 'असद' न हमने गदाई में दिल-लगी
साइल<ref>भिखारी</ref> हुए तो आ़शिक़-ए-अहल-ए-करम हुए