भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नौ सपने / भाग 4 / अमृता प्रीतम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
|सारणी=नौ सपने / अमृता प्रीतम | |सारणी=नौ सपने / अमृता प्रीतम | ||
}} | }} | ||
− | + | [[Category:पंजाबी भाषा]] | |
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
मेरे और मेरी कोख तक – | मेरे और मेरी कोख तक – |
02:50, 8 मार्च 2010 के समय का अवतरण
मेरे और मेरी कोख तक –
यह सपनों का फ़ासला।
मेरा जिया हुलसा और हिया डरा,
बैसाख में कटने वाला
यह कैसा कनक था
छाज में फटकने को डाला
तो छाज तारों से भर गया...
... ... ...