"तुम्हारी हर ग़लत— गोई रवा है / सुरेश चन्द्र शौक़" के अवतरणों में अंतर
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मिरा जिस ज़िन्दगी से वास्ता है | मिरा जिस ज़िन्दगी से वास्ता है | ||
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हँसी भी बोयें तो उगते हैं आँसू | हँसी भी बोयें तो उगते हैं आँसू | ||
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कोई आगे नहीं बढ़ता मदद को | कोई आगे नहीं बढ़ता मदद को | ||
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जिसे देखो तमाशा देखता है | जिसे देखो तमाशा देखता है | ||
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मकाँ उस शख़्स का बेशक बड़ा है | मकाँ उस शख़्स का बेशक बड़ा है | ||
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उसे अच्छा—बुरा तुम कुछ भी कह लो | उसे अच्छा—बुरा तुम कुछ भी कह लो | ||
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मगर उस शख़्स की अपनी अदा है | मगर उस शख़्स की अपनी अदा है | ||
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यहाँ सब कुछ मिरा देखा हुआ है | यहाँ सब कुछ मिरा देखा हुआ है | ||
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तिरी कुर्सी से है बस क़द्र तेरी | तिरी कुर्सी से है बस क़द्र तेरी | ||
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वगरना कौन तुझको पूछता है | वगरना कौन तुझको पूछता है | ||
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किसी मुहताज को पू्छे न पूछे | किसी मुहताज को पू्छे न पूछे | ||
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मगर पत्थर को इन्साँ पूजता है | मगर पत्थर को इन्साँ पूजता है | ||
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किसे आवाज़ दें किसको पुकारें | किसे आवाज़ दें किसको पुकारें | ||
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कि ख़ुद में हर कोई डूबा हुआ है | कि ख़ुद में हर कोई डूबा हुआ है | ||
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बदल सकता है कौन ऐ शौक़ उसको | बदल सकता है कौन ऐ शौक़ उसको | ||
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20:26, 9 मार्च 2010 के समय का अवतरण
तुम्हारी हर ग़लत—गोई<ref>झूठ</ref> रवा<ref>उचित</ref> है
मिरी हक़ बात भी लेकिन ख़ता<ref>अपराध</ref> है
बड़ी बेढब, बड़ी बे—ज़ाबिता<ref>नियम के विरुद्ध</ref> है
मिरा जिस ज़िन्दगी से वास्ता है
हँसी भी बोयें तो उगते हैं आँसू
अजब इस शहर की आबो—हवा है
कोई आगे नहीं बढ़ता मदद को
जिसे देखो तमाशा देखता है
दरो—रौज़न<ref>द्वार, रौशनदान</ref> हैं कितने छोटे—छोटे
मकाँ उस शख़्स का बेशक बड़ा है
उसे अच्छा—बुरा तुम कुछ भी कह लो
मगर उस शख़्स की अपनी अदा है
मुझे आदाब—ए—महफ़िल<ref>महफ़िल के नियम</ref> मत सिखाओ
यहाँ सब कुछ मिरा देखा हुआ है
तिरी कुर्सी से है बस क़द्र तेरी
वगरना कौन तुझको पूछता है
किसी मुहताज को पू्छे न पूछे
मगर पत्थर को इन्साँ पूजता है
किसे आवाज़ दें किसको पुकारें
कि ख़ुद में हर कोई डूबा हुआ है
बदल सकता है कौन ऐ शौक़ उसको
तिरी तक़दीर में जो कुछ लिखा है