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"रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गये / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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दुश्मन भी जिस को देख के ग़मनाक हो गए <br><br>
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07:30, 10 मार्च 2010 का अवतरण

रोने से और इश्क़ में बे-बाक<ref>निडर</ref> हो गए
धोए गए हम ऐसे कि बस पाक<ref>पवित्र</ref> हो गए

सर्फ़-ए-बहा-ए-मै<ref>शराब के लिए किया हुआ ख़र्च</ref> हुए आलात-ए-मैकशी<ref>शराब ख़ींचने के उपकरण</ref>
थे ये ही दो हिसाब, सो यों पाक<ref>भुगताना</ref> हो गए

रुसवा-ए-दहर<ref>दुनिया में बदनाम</ref> गो हुए आवारगी से तुम
बारे<ref>फिर भी</ref> तबीअ़तों<ref>आदत</ref> के तो चालाक हो गए

कहता है कौन नाला-ए-बुलबुल को बेअसर
पर्दे में गुल के लाख जिगर चाक हो गए

पूछे है क्या वुजूद-ओ-अ़दम<ref>अस्तित्व और अभाव</ref> अहल-ए-शौक़<ref>अभिलाषी</ref> का
आप अपनी आग से ख़स-ओ-ख़ाशाक<ref>तिनका और लकड़ी</ref> हो गए

करने गये थे उस से तग़ाफ़ुल<ref>बेपरवाही</ref> का हम गिला
की एक ही निगाह, कि बस ख़ाक हो गए

इस रंग से उठाई कल उस ने "असद" की न'श<ref>अर्थी</ref>
दुश्मन भी जिस को देख के ग़मनाक हो गए

शब्दार्थ
<references/>