"चाहिये अच्छों को जितना चाहिये / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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− | + | मुन्हसिर<ref>निर्भर</ref> मरने पे हो जिस की उमीद<ref>उम्मीद,आशा</ref> | |
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− | + | आप की सूरत तो देखा चाहिये | |
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02:42, 14 मार्च 2010 के समय का अवतरण
चाहिये, अच्छों को जितना चाहिये
ये अगर चाहें, तो फिर क्या चाहिये
सोहबत-ए-रिन्दां<ref>रसिकों(शराबीयों) की संगत</ref> से वाजिब<ref>सही</ref> है हज़र<ref>दूर रहना</ref>
जा-ए-मै<ref>शराबखाना</ref> अपने को खेंचा चाहिये<ref>खींच लेना</ref>
चाहने को तेरे क्या समझा था दिल
बारे<ref>आखिर</ref>, अब इस से भी समझा चाहिये
चाक मत कर जैब<ref>कमीज की गरदनी</ref> बे-अय्याम-ए-गुल<ref>बिना गुलाबों के मौसम के</ref>
कुछ उधर का भी इशारा चाहिये
दोस्ती का पर्दा है बेगानगी
मुंह छुपाना हम से छोड़ा चाहिये
दुश्मनी में मेरी खोया ग़ैर को
किस क़दर दुश्मन है, देखा चाहिये
अपनी, रुस्वाई में क्या चलती है सअई<ref>मर्ज़ी</ref>
यार ही हंगामाआरा<ref>हल्ला-गुल्ला करने वाला</ref> चाहिये
मुन्हसिर<ref>निर्भर</ref> मरने पे हो जिस की उमीद<ref>उम्मीद,आशा</ref>
नाउमीदी<ref>ना-उम्मीदगी, निराशा</ref> उस की देखा चाहिये
ग़ाफ़िल<ref>अंजान</ref>, इन महतलअ़तों<ref>चाँद से चेहरे वालों</ref> के वास्ते
चाहने वाला भी अच्छा चाहिये
चाहते हैं ख़ूब-रुओं<ref>सुंदर चेहरे वाले</ref> को, "असद"
आप की सूरत तो देखा चाहिये