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"अपनी बेटी के लिए-3 / प्रमोद त्रिवेदी" के अवतरणों में अंतर

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13:16, 14 मार्च 2010 के समय का अवतरण

अवतरित होती हो तुम
हमारी बोली में,
वाणी में!

भाषा से परे चुपचाप और
अचानक ही चली आती हो
आँखों में भर आए
पानी में!

कितनी-कितनी स्थितियों-स्मृतियों में
कितने-कितने तरह से ढलती हो तुम
कहानी में।

जितनी हो दूर हमसे
पास भी हो उतनी ही
फ़ासले हैं तो कैसे हैं ये
अपनी दरमियानी में।