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"ये मशवरे बहम उठे हैं चारा-जू करते / अज़ीज़ लखनवी" के अवतरणों में अंतर
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02:14, 26 मार्च 2010 के समय का अवतरण
ये मशवरे बहम<ref>साथ</ref> उठे हैं चारा-जु करते
अब इस मरीज़ को अच्छा था क़िबलरु करते
कफ़न को बाँधे हुए सर से आए हैं वरना
हम और आप से इस तरह गुफ़्तगू करते
जवाब हज़रत-ए-नासेह<ref>नसहीत करने वाला</ref> को हम भी कुछ देते
जो गुफ़्तगू के तरीक़े से गुफ़्तगू करते
पहुँच के हश्र के मैदान में हौल क्यों है 'अज़ीज़'
अभी तो पहली ही मंज़िल है जूस्तजू<ref>इच्छा</ref> करते
शब्दार्थ
<references/>