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"हम कब शरीक होते हैं / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर

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वह अपने रंग में हैं, हम अपनी तरंग में
 
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मफ़्तूह हो के भूल गए शेख़ अपनी बह्स
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06:00, 26 मार्च 2010 के समय का अवतरण

हम कब शरीक होते हैं दुनिया की ज़ंग में
वह अपने रंग में हैं, हम अपनी तरंग में

मफ़्तूह<ref>खुल कर बोलना</ref> हो के भूल गए शेख़ अपनी बहस
मन्तिक़<ref>तर्क शास्त्र-एक विषय</ref> शहीद हो गई मैदाने ज़ंग में

शब्दार्थ
<references/>