भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"धरि राखौ ज्ञान-गुन गौरव गुमान गोइ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर' |संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथ…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:08, 26 मार्च 2010 के समय का अवतरण
धरि राखौ ज्ञान गुन गौरव गुमान गोइ
गोपिन कौं आवत न भावत भड़ंग है ।
कहै रतनाकर करत टांय-टांय वृथा
सुनत न कौ इहाँ यह मुहचंग है ॥
और हूँ उपाय केते सहज सुढंग ऊधौ
साँस रोकिबै कौं कहा जोग ही कुढंग है ।
कुटिल कटारी है अटारी है उतंग अति
जमुना-तरंग है, तिहारौ सतसंग है ॥67॥