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सुघर सलोने स्यामसुन्दर सुजान कान्ह
करुना-निधान कें बसीठ बनि आए हौ ।
प्रेम-प्रनधारी गिरधारी को सनेसौ नाहिं
होत हैं अंदेस झूठ बोलत बताए हौ ॥
ज्ञान-गुन गौरव-गुमान-भरे फूले फिरौ
बंचक के काज पै न रंचक बराए हौ ।
रसिक सरौमनि कौ नाम बदनाम करौ
मेरी जान ऊधौ कूर-कूबरी-पठाए हौ ॥74॥