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"दिन सलीक़े से उगा, रात ठिकाने से रही / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर
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दोस्ती अपनी भी कुछ रोज़ ज़माने से रही | दोस्ती अपनी भी कुछ रोज़ ज़माने से रही | ||
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ज़िन्दगी रोज़ तो तस्वीर बनाने से रही | ज़िन्दगी रोज़ तो तस्वीर बनाने से रही | ||
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रात जंगल में कोई शम्मा जलाने से रही | रात जंगल में कोई शम्मा जलाने से रही | ||
− | + | फ़ासला चाँद बना देता है हर पत्थर को | |
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दूर की रौशनी नज़दीक तो आने से रही | दूर की रौशनी नज़दीक तो आने से रही | ||
− | + | शहर में सब को कहाँ मिलती है रोने की फ़ुरसत | |
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अपनी इज़्ज़त भी यहाँ हँसने-हँसाने से रही | अपनी इज़्ज़त भी यहाँ हँसने-हँसाने से रही | ||
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19:44, 28 मार्च 2010 के समय का अवतरण
दिन सलीक़े से उगा रात ठिकाने से रही
दोस्ती अपनी भी कुछ रोज़ ज़माने से रही
चंद लम्हों को ही बनती हैं मुसव्विर आँखें
ज़िन्दगी रोज़ तो तस्वीर बनाने से रही
इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी
रात जंगल में कोई शम्मा जलाने से रही
फ़ासला चाँद बना देता है हर पत्थर को
दूर की रौशनी नज़दीक तो आने से रही
शहर में सब को कहाँ मिलती है रोने की फ़ुरसत
अपनी इज़्ज़त भी यहाँ हँसने-हँसाने से रही