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एक कविता | एक कविता |
21:58, 2 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
एक कविता
अपने बनने के दौरान
कई अलिखित शब्दों की भयावह चुप्पी की गवाह थी
उसकी हर पंक्ति में
समानांतर विचारों की हत्या
देखी जा सकती थी
जहाँ कविता का मर्म छुपा हुआ था
वहाँ निषिद्ध अर्थों की क़ब्र थी
जिसके शिलालेख पर कुछ लिखकर मिटा दिया गया था
एक कविता
शुरु से अंत तक
कुछ अनिवार्य क्रूरताओं को बरतते हुए तैयार हुई थी ।