भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"विकसित विपिन बसंतिकावली कौ रंग / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर' |संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथ…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:47, 3 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
विकसित विपिन बसंतिकावली कौ रंग
लखियत गोपिन के अंग पियराने में ।
बौरे वृन्द लसत रसाल-बर बारिनि के
पिक की पुकार है चबाव उमगान में ॥
होत पतझार झार तरुनि-समूहनि कौ
बैहरि बतास लै उसास अधिकाने में ।
काम बिधि बाम की कला मैं मीन-मेष कहा
ऊधौ नित बसत बसंत बरसाने में ॥87॥