भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वक़्त ने फिर पन्ना पलटा है/ सतपाल 'ख़याल'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सतपाल 'ख़याल' |संग्रह= }} Category:ग़ज़ल <poem> वक़्त ने फ…)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:15, 3 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

 
वक़्त ने फिर पन्ना पलटा है
अफ़साने में आगे क्या है?

घर में हाल बजुर्गों का अब
पीतल के बरतन जैसा है

कोहरे में लिपटी है बस्ती
सूरज भी जुगनू लगता है

जन्मों-जन्मों से पागल दिल
किस बिछुड़े को ढूँढ रहा है?

जो माँगो वो कब मिलता है
अबके हमने दुख माँगा है

रोके से ये कब रुकता है
वक़्त का पहिया घूम रहा है

आज 'ख़याल' आया फिर उसका
मन माज़ी में डूब गया है

हमने साल नया अब घर की
दीवारों पर टाँग दिया है।