भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) छो |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=ग़ालिब | |रचनाकार=ग़ालिब | ||
+ | |संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब | ||
}} | }} | ||
[[Category:ग़ज़ल]] | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
+ | <poem> | ||
+ | न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता | ||
+ | डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता! | ||
− | + | हुआ जब ग़म से यूँ बेहिस<ref>हैरान</ref>, तो ग़म क्या सर के कटने का ? | |
− | + | न होता गर जुदा तन से, तो ज़ानू<ref>घुटनों</ref> पर धरा होता | |
− | + | हुई मुद्दत के 'ग़ालिब' मर गया, पर याद आता है | |
− | + | वो हर इक बात पर कहना, कि यूं होता तो क्या होता? | |
− | + | </poem> | |
− | हुई मुद्दत के | + | {{KKMeaning}} |
− | वो हर | + |
21:17, 6 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता!
हुआ जब ग़म से यूँ बेहिस<ref>हैरान</ref>, तो ग़म क्या सर के कटने का ?
न होता गर जुदा तन से, तो ज़ानू<ref>घुटनों</ref> पर धरा होता
हुई मुद्दत के 'ग़ालिब' मर गया, पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना, कि यूं होता तो क्या होता?
शब्दार्थ
<references/>