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"जहाँ जो कुछ भी अलक्षित / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर
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मैं वही हूँ, | मैं वही हूँ, | ||
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मौन और एकांत क्षण में । | मौन और एकांत क्षण में । | ||
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पेड़ से पत्ता गिरा था टूटकर | पेड़ से पत्ता गिरा था टूटकर | ||
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तीर रहा था जलप्लावन में कभी | तीर रहा था जलप्लावन में कभी | ||
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बाढ़ का थामना नियत था | बाढ़ का थामना नियत था | ||
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और चींटी को मिली धरती समूची | और चींटी को मिली धरती समूची | ||
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सड़ गया पत्ता | सड़ गया पत्ता | ||
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कहीं जो गड़ गया था | कहीं जो गड़ गया था | ||
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मैं वही हूँ | मैं वही हूँ | ||
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कहीं कुछ भी जो अलक्षित रह गया है | कहीं कुछ भी जो अलक्षित रह गया है | ||
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मैं वही हूँ, मैं वही हूँ। | मैं वही हूँ, मैं वही हूँ। |
10:38, 15 अप्रैल 2010 का अवतरण
जहाँ जो कुछ भी अलक्षित रह गया है
मैं वही हूँ,
मौन और एकांत क्षण में ।
पेड़ से पत्ता गिरा था टूटकर
तीर रहा था जलप्लावन में कभी
फिर हुआ क्या?
बैठ कर उसपर बची थी एक चींटी
बाढ़ का थामना नियत था
थम गई थी
और चींटी को मिली धरती समूची
सड़ गया पत्ता
कहीं जो गड़ गया था
मैं वही हूँ
कहीं कुछ भी जो अलक्षित रह गया है
मैं वही हूँ, मैं वही हूँ।